सलमान खान की ‘बैटल ऑफ गलवान’ ट्रेलर ने भारत-चीन के बीच राजनयिक विवाद को भड़काया

Screengrab from the Trailer of Salman Khan’s Bollywood Film Battle of Galwan
Screengrab from the Trailer of Salman Khan’s Bollywood Film Battle of Galwan

सलमान खान की ‘बैटल ऑफ गलवान’ ट्रेलर ने भारत-चीन के बीच राजनयिक विवाद को भड़काया

फिल्म को घरेलू पर्यवेक्षकों से आलोचना मिल रही है, जो इसे ‘सिनेमाई प्रचार’ और ‘भारतीय जीत के बारे में झूठ’ फैलाने का प्रयास बता रहे हैं, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को मजबूत किया जा सके।

By Rakesh Raman
New Delhi | December 31, 2025

नई दिल्ली: बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की आगामी फिल्म ‘बैटल ऑफ गलवान’ के ट्रेलर ने भारत और चीन के बीच एक गर्म राजनयिक बहस को जन्म दिया है। चीन की सरकारी मीडिया ने इस फिल्म पर ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया है, जबकि भारतीय सरकार ने इसे कलात्मक स्वतंत्रता का मामला बताकर बचाव किया है। यह विवाद इस बात को उजागर करता है कि कैसे बॉलीवुड फिल्मकार मोदी सरकार के ‘चाटुकार’ बनकर कर जांच या कर छापों से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

फिल्म, जो अप्रैल 2026 में रिलीज होने वाली है, सलमान खान को भारतीय सेना की 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडर कर्नल बिक्कुमल्ला संतोष बाबू के रूप में दिखाती है। यह 2020 के गलवान घाटी संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहां भारतीय सेना ने पुष्टि की थी कि पश्चिमी हिमालय के लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा 20 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी गई थी।

ट्रेलर को सलमान खान ने 27 दिसंबर 2025 को यूट्यूब पर रिलीज किया। सलमान, जिन्हें चीन में ‘बजरंगी भाईजान’ से जाना जाता है, अक्सर ‘अजेय’ भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें ‘बहुत सरल’ प्लॉट और ‘अतिरंजित’ विजुअल इफेक्ट्स के लिए चिढ़ाया जाता है।

[ 🔊 सलमान खान की फिल्म ‘बैटल ऑफ गलवान’ पर अंतरराष्ट्रीय विवाद: ऑडियो विश्लेषण ]

चीन की आलोचना: ग्लोबल टाइम्स और चीनी विशेषज्ञों ने फिल्म को मनोरंजन-उन्मुख और भावनात्मक रूप से उत्तेजित चित्रण बताकर खारिज कर दिया। एक विशेषज्ञ ने कहा कि ‘फिल्मी अतिरंजना की कोई भी मात्रा’ इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकती या पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की क्षेत्रीय दृढ़ता को कमजोर नहीं कर सकती।

भारतीय सरकार की प्रतिक्रिया: 30 दिसंबर 2025 को, भारतीय सरकार के सूत्रों ने कहा कि फिल्मकारों को अपनी कलात्मक स्वतंत्रता के अनुसार फिल्म बनाने का अधिकार है, बिना किसी हस्तक्षेप के।

घरेलू आलोचना: फिल्म को घरेलू पर्यवेक्षकों से आलोचना मिल रही है, जो इसे ‘सिनेमाई प्रचार’ और ‘भारतीय जीत के बारे में झूठ’ फैलाने का प्रयास बता रहे हैं, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को मजबूत किया जा सके। आलोचकों का दावा है कि मोदी प्रशासन ने ‘कायरतापूर्ण’ तरीके से इस तथ्य को नजरअंदाज किया है कि चीन लद्दाख में भारत के लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रहा है।

व्यापक संदर्भ: यह विवाद बॉलीवुड फिल्मकारों पर लगाए जा रहे आरोपों को रेखांकित करता है कि वे मोदी शासन के ‘चाटुकार’ के रूप में कार्य कर रहे हैं, ताकि कर छापों या जांचों जैसे प्रतिशोधों से बच सकें। ऐसी फिल्में ‘एक व्यक्ति के दर्शक’ (प्रधानमंत्री मोदी) के लिए बनाई जाती हैं, ताकि नीति विफलताओं को छिपाया जा सके और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की राष्ट्रवादी एजेंडा को बढ़ावा दिया जा सके। राष्ट्रवादी थीम वाली ऐसी प्रोडक्शन, जैसे हालिया फिल्म ‘धुरंधर’, घरेलू बहुमत से ‘आसान पैसा’ कमाने की उम्मीद रखती हैं, जबकि क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों और अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ नफरत फैलाती हैं।

यह घटना भारत-चीन संबंधों में बढ़ते तनाव को दर्शाती है, जहां सिनेमा राजनीतिक टूल बन गया है।

By Rakesh Raman, who is a national award-winning journalist and social activist. He is the founder of a humanitarian organization RMN Foundation which is working in diverse areas to help the disadvantaged and distressed people in the society.

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