भारत के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को मुख्य मुद्दा क्यों माना जाता है: एक सारांश

Opposition political parties holding a press conference on April 14, 2019 to raise the issue of election frauds on EVMs in India. (file photo)
Opposition political parties holding a press conference on April 14, 2019 to raise the issue of election frauds on EVMs in India. (file photo)

भारत के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को मुख्य मुद्दा क्यों माना जाता है: एक सारांश

“स्मोकस्क्रीन” उन मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला है जिन्हें जानबूझकर सार्वजनिक बहस के केंद्र में रखा जाता है ताकि EVM की कार्यप्रणाली पर सवाल न उठाया जा सके।

By Rakesh Raman
New Delhi | December 23, 2025

1. परिचय: असली मुद्दा बनाम राजनीतिक “स्मोकस्क्रीन”

लेखक का मुख्य तर्क यह है कि भारत में चुनावी नियंत्रण का असली इंजन संस्थागत कब्जा नहीं है, जैसा कि व्यापक रूप से चर्चा की जाती है, बल्कि स्वयं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM) हैं। लेखक “स्मोकस्क्रीन” (धुएं का पर्दा) की अवधारणा का परिचय देता है, जिसका उपयोग वह उन सभी राजनीतिक भटकावों का वर्णन करने के लिए करता है जो EVM के मूल मुद्दे से ध्यान हटाते हैं। यह समझने के लिए कि यह ‘स्मोकस्क्रीन’ वास्तव में क्या है और यह कैसे काम करता है, हमें उन मुद्दों पर गौर करना होगा जिन्हें लेखक ध्यान भटकाने वाला मानता है।

2. “स्मोकस्क्रीन” को समझना: ध्यान भटकाने वाले मुद्दे

लेखक के अनुसार, “स्मोकस्क्रीन” उन मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला है जिन्हें जानबूझकर सार्वजनिक बहस के केंद्र में रखा जाता है ताकि EVM की कार्यप्रणाली पर सवाल न उठाया जा सके। इस स्मोकस्क्रीन का हिस्सा बनने वाले मुद्दे हैं:

  • संस्थागत कब्जा: चुनाव आयोग (ECI), ED और CBI जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग।
  • राजनीतिक नैरेटिव: कल्याणकारी घोषणाएं, राष्ट्रवाद, और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण।
  • विपक्ष की कथित अक्षमता और मीडिया का तमाशा

लेखक यह तर्क देते हैं कि ये मुद्दे सत्तारूढ़ दल के प्रभुत्व का कारण नहीं हैं, बल्कि यह मुख्य समस्या के चारों ओर बुना गया एक सुरक्षा कवच है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक बहस को EVM की अपारदर्शी प्रकृति से दूर रखना है। इस ‘स्मोकस्क्रीन’ के विपरीत, लेखक चुनावी प्रक्रिया के उस मूल तत्व पर ध्यान केंद्रित करता है जिसे वह वास्तविक समस्या मानता है: स्वयं EVM प्रणाली।

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3. मुख्य समस्या: EVM की अपारदर्शिता और गैर-सत्यापन योग्य प्रकृति

लेखक का तर्क है कि भारत की चुनावी प्रणाली का मूल संकट EVM की संरचना में ही निहित है। यह प्रणाली अपारदर्शी और गैर-सत्यापन योग्य है, जो इसे बाहरी हेरफेर के प्रति संवेदनशील बनाती है।

EVM प्रणाली में बताई गई मुख्य खामियाँ

खामी (Flaw) इसका मतलब क्या है? (What does it mean?)
कोई सार्वजनिक ऑडिट नहीं डाले गए वोटों का सार्वजनिक रूप से ऑडिट नहीं किया जा सकता ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि घोषित परिणाम सही हैं।
वोटर का सत्यापन नहीं मतदाता के पास यह पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं है कि उसका वोट वास्तव में उसके चुने हुए उम्मीदवार के लिए सही ढंग से दर्ज और गिना गया है।
स्वतंत्र जांच पर रोक स्वतंत्र विशेषज्ञों और तकनीकी समीक्षकों को EVM के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर आर्किटेक्चर की गहन जांच करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
डेटा को रोकना CCTV फुटेज, मशीन लॉग और विस्तृत मतदान डेटा जैसी महत्वपूर्ण जानकारी नियमित रूप से जनता से छिपाई जाती है या प्रदान नहीं की जाती है।

इन बिंदुओं का सार प्रस्तुत करते हुए, लेखक का निष्कर्ष है कि ये आकस्मिक खामियां नहीं हैं, बल्कि एक “संरचनात्मक डिजाइन विकल्प” हैं। यह डिजाइन चुनाव परिणामों को नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान करता है, जबकि लोकतंत्र का बाहरी स्वरूप बना रहता है। EVM की इन तकनीकी और संरचनात्मक समस्याओं के सामने, राजनीतिक प्रतिक्रिया, विशेष रूप से विपक्ष की ओर से, उतनी प्रभावी नहीं रही है जितनी होनी चाहिए थी।

4. विपक्ष की प्रतिक्रिया: एक रणनीतिक विफलता

लेखक विपक्ष (विशेष रूप से राहुल गांधी) की EVM मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफलता की आलोचना करता है। इस रणनीति में मुख्य विरोधाभास यह है कि “राजा की आत्मा EVM में है” जैसी तीखी टिप्पणियां करने के बावजूद, EVM को खत्म करने और मतपत्रों की बहाली की मांग के लिए कभी भी कोई बड़ा जन आंदोलन नहीं बनाया गया।

लेखक के अनुसार विपक्ष की रणनीति की विशिष्ट विफलताएं निम्नलिखित हैं:

  • अनियमित चिंता: EVM संबंधी चिंताओं को केवल कभी-कभार या चुनाव के आसपास ही उठाया जाता है।
  • सीमित विरोध: विरोध प्रदर्शन केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस और संसद की बहसों तक ही सीमित रहते हैं।
  • चुनाव बहिष्कार से बचना: चुनावों का बहिष्कार करने से परहेज किया जाता है, भले ही वे उन्हें धांधली वाला मानते हों।
  • धांधली के दावों के बावजूद भागीदारी: उन चुनावों में लगातार भाग लेना जिन्हें वे स्वयं धांधली पूर्ण बताते हैं, जिससे उनके आरोपों की गंभीरता कम हो जाती है।

लेखक यह भी इंगित करता है कि ऐसी चुनावी विफलताओं और रणनीतिक अनिर्णय के बावजूद राहुल गांधी का नेतृत्व केवल उनकी वंशवादी विरासत के कारण बना हुआ है। यह रणनीतिक विफलता लेखक के अंतिम निष्कर्ष की ओर ले जाती है, जो पूरे तर्क को एक साथ बांधता है।

5. निष्कर्ष: जब तक EVM हैं, परिणाम अनुमानित हैं

लेखक का अंतिम तर्क यह है कि भाजपा राजनीतिक बयानबाजी या संस्थागत कमजोरी के कारण चुनाव नहीं जीतती, बल्कि इसलिए जीतती है क्योंकि वोट गिनने की प्रक्रिया स्वयं अपारदर्शी और गैर-सत्यापन योग्य है। यह प्रणाली परिणामों को जनभावना की परवाह किए बिना प्रबंधित करने की अनुमति देती है।

लेखक इस बात पर जोर देता है कि जब तक इस मूलभूत EVM प्रणाली को खत्म नहीं किया जाता, तब तक कोई भी अन्य राजनीतिक बहस केवल “सजावटी” है। जब तक चुनाव इन अविश्वसनीय मशीनों पर होते रहेंगे, वे “अनुमानित विजेता” ही पैदा करते रहेंगे। लेखक के अनुसार, यही असली ‘स्मोकस्क्रीन’ है, जिसके केंद्र में EVM नामक चुनावी नियंत्रण का तंत्र स्थापित है।

By Rakesh Raman, who is a national award-winning journalist and social activist. He is the founder of a humanitarian organization RMN Foundation which is working in diverse areas to help the disadvantaged and distressed people in the society.

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